>>: उपेक्षा और अकेलेपन से बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर

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वृद्धावस्था में शारीरिक समस्याएं होना निश्चित है लेकिन इस अवस्था में बुजुर्गों को अगर उपेक्षा और अकेलेपन का दोहरा दंश झेलना हो तो यह और भी पीड़ादायक है। पहले बुजुर्गों के सम्मान को ठेस पहुंचाने, बुजुर्गों के एकाकी होने की समस्याएं सिर्फ बड़े शहरों तक सीमित मानी थी लेकिन अब तो यह विकट समस्या जैसलमेर जैसे छोटे शहर में अपना असर दिखा रही है। टीवी-ओटीटी आदि कंटेट देखने से मन:स्थिति में आ रही तब्दीली, पर्यटन की बाढ़, आसानी से मिलता पैसा, पैसे कमाने को लेकर हो रही चूहा दौड़, दोस्ताना रिश्तों को परिवार से ज्यादा तरजीह देने की बलवती हो रही भावना के साथ परिवारों में बेटे के ससुराल के बढ़ते दखल के चलते बुज़ुर्ग स्वयं को ठगा और अकेला महसूस करने लगे हैं। इसी का परिणाम है अकेलेपन के शिकार बुज़ुर्ग जो अपनों से बात करने तक को तरस रहे हैं। जैसलमेर में शोध करने पर सामने आया कि बुजुर्गों में बढ़ती अकेलेपन की समस्या का बड़ा कारण युवाओं की ओर से की गई उपेक्षा है, इसके अलावा कमोबेश इसके लिए कहीं न कहीं बुजुर्गों का अहंकारपरक स्व केंद्रित रवैया भी कम जिम्मेदार नहीं है। बुजुर्ग परिवार की सत्ता छोडऩे के लिए तैयार नहीं हैं। युवाओं को निर्णय का अधिकार न देना और अपने प्रौढ़ हो रहे पुत्र को भी बालक मान लेने की प्रवृत्ति के चलते सामाजिक ढांचा बिगड़ रहा है। देखा जाए तो संयुक्त परिवारों को प्रश्रय देने, नव विवाहित युवतियों को संयुक्त परिवार में जीवन जीने के लिए प्रेरित करने से यह समस्या कुछ हद तक सुलझ सकती है।
अकेलेपन पर क्या कहता है शोध
- एक गैर सरकारी संस्था की शोध रिपोर्ट के अनुसार, भारत में इस समय बुज़ुर्गजनों की आबादी लगभग 15 करोड़ है, जो 2026 में 17 करोड़ और 2036 में लगभग 23 करोड़ हो जाएगी। इस आबादी के 60 प्रतिशत बुज़ुर्ग इस समय अकेलापन, दुव्र्यवहार, उपेक्षा और अनादर झले रहे हैं। महिलाओं की स्थिति और भी दयनीय है।
- केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा प्रकाशित बुजुर्गों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं विषयक रिपोर्ट के अनुसार 25 फीसदी बुज़ुर्ग अवसाद और अकेलेपन का शिकार हंै।
- हेल्प एज इंडिया की ओर से बुज़ुर्ग महिलाओं पर किये गए शोध के अनुसार 40 फीसदी महिलाएं मानसिक समस्याओं और अकेलेपन की शिकार हैं।
- युवाओं द्वारा बुजुर्गों को समय न दे पाने के कारण समाज के बुज़ुर्ग अकेलेपन, कुंठा, आक्रामकता और झुंझलाहट के शिकार हो रहे हैं। 15 फीसदी से अधिक बुज़ुर्ग व्यक्तियों का मानसिक स्वास्थ्य गड़बड़ है और उन्हें सीधे तौर पर मनोचिकित्सा की जरूरत है।
एक्सपर्ट व्यू -
बुजुर्ग अपनी रुचियों को पूरा करें
समाजशास्त्र की शोध और सुसाइड पुस्तक के डेटाबेस के अनुसार, सामूहिकता की जगह अब व्यक्तिवाद हावी है। इसी वजह से युवा वर्ग आत्मकेंद्रित हो गया है और उसे बुजुर्गों का या अपने प्रियजनों तक का साथ रुचिकर नहीं लग रहा। अकेलापन कम करने के लिये बुजुर्गों को मित्रों, बंधुओं और समाज के साथ जुडऩा होगा। मनोविज्ञान के शोध के अनुसार जितना नुकसान नशे से होता है, वैसा ही नुकसान अकेलेपन से भी होता है। बुजुर्गों को स्वाध्याय, लेखन और अपनी युवावस्था के अधूरे छूटे कार्यों को संपन्न करने में समय व्यतीत करना चाहिए। उन्हें आध्यात्मिक होकर वीतरागी बनना पडेगा। वीतराग का अर्थ है न किसी से जुड़ाव और न किसी से कटाव अर्थात तटस्थता का भाव विकसित करना। बुजुर्गों को युवाओं की व्यस्तता को समझना चाहिए। वर्तमान युग में परस्पर प्रतियोगिता, प्रोफेशनल कार्य और कार्य का तनाव - पहले के मुकाबले बहुत अधिक है इसलिए बुजुर्गों को अब "युवा समय नहीं दे रहे" का उलाहना छोडकऱ खुद को व्यस्त रखने के लिए नया मार्ग बनाना होगा। उन्हें अपने मन के बच्चे को बाहर निकालना, खेलना, संगीत सुनना और मन की इच्छा को पूरा करने जैसे कार्य करने होंगे, जिससे उनका मस्तिष्क शांत होगा और अकेलेपन से राहत मिलेगी।
- डॉ. गौरव बिस्सा, मैनेजमेंट ट्रेनर और काउंसलर

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